लाल बैग की तो जैसी चाँदी हो गयी
पिछले साल पेरिस और स्पेन गया था
इस साल लन्दन जा रहा है
पिछले साल कुछ कागज़ पेंसिल लेकर गया था
वापिस आया तो किताब उगल दी
पीठ पर लटका लटका घंटो चला
कभी मुस्कुराते हुए
कभी कंप्लेंन करते हुए
इतना कुछ भर लिया अपने अन्दर
की मेरे कंधे थक कर चूर हो गए
इतने लोग, इतनी कहानिया
इतना म्यूजिक, इतने कलाकार
लाल बैग काफी क्यूरियस मिजाज़ का है
अब टिकट क्या बुक हो गया
ये तो हवा में गोते भरने लगा
इस साल जाने क्या क्या भर लायेगा
लाल बैग की तो जैसी चाँदी हो गयी
पिछले साल पेरिस और स्पेन गया था
इस साल लन्दन जा रहा है
पिछले साल कुछ कागज़ पेंसिल लेकर गया था
वापिस आया तो किताब उगल दी
पीठ पर लटका लटका घंटो चला
कभी मुस्कुराते हुए
कभी कंप्लेंन करते हुए
इतना कुछ भर लिया अपने अन्दर
की मेरे कंधे थक कर चूर हो गए
इतने लोग, इतनी कहानिया
इतना म्यूजिक, इतने कलाकार
लाल बैग काफी क्यूरियस मिजाज़ का है
अब टिकट क्या बुक हो गया
ये तो हवा में गोते भरने लगा
इस साल जाने क्या क्या भर लायेगा
लाल बैग की तो जैसी चाँदी हो गयी
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