Apr 18, 2013

My Red Backpack

लाल बैग की तो जैसी चाँदी हो गयी
पिछले साल पेरिस और स्पेन गया था
इस साल लन्दन जा रहा है
पिछले साल कुछ कागज़ पेंसिल लेकर गया था
वापिस आया तो किताब उगल दी
पीठ पर लटका लटका घंटो चला
कभी मुस्कुराते हुए
कभी कंप्लेंन करते हुए
इतना कुछ भर लिया अपने अन्दर
की मेरे कंधे थक कर चूर हो गए
इतने लोग, इतनी  कहानिया
इतना म्यूजिक, इतने कलाकार 
लाल बैग काफी क्यूरियस मिजाज़ का है
अब टिकट क्या बुक हो गया
ये  तो हवा में गोते भरने लगा
इस साल जाने क्या क्या भर लायेगा
लाल बैग की तो जैसी चाँदी हो गयी


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